Sunday, December 3, 2023
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नेता तो कोई भी बन सकता है, ‘नेताजी’ बनना मुश्किल है

Sandeep Yadav : ‘नेताजी श्री मुलायम सिंह यादव जी को शत शत नमन. नेता होना सौभाग्य होता होगा शायद, ‘नेताजी’ होना परम सौभाग्य ही कहा जायेगा.

एक व्यक्ति न सिर्फ़ अपनी पार्टी में बल्कि आम जनमानस में , विपक्ष में, मीडिया में ‘नेताजी’ बनकर उभरता है ये बहुत बड़ी बात है. एक मुलाकात में किसी को कोई अपना मुरीद कैसे बना लेना है ये सबसे बड़ी क़्वालिटी नेता जी में थी.

आज वो इस दुनिया को छोड़कर चले गये लेकिन देखिये की उनकी बातें, उनके किस्से, उनकी दोस्ती की कहानियां, उनके पक्ष विपक्ष से सौहार्दपूर्ण रिश्तों की मिसालों से पूरा सोशल मीडिया भरा पड़ा है. विपक्ष के तमाम बड़े बड़े नेता कह रहे हैं कि कैसे नेताजी ने उनकी मदद की, कैसे उन्हें गाइड किया, कैसे संरक्षक के तौर पर उनका ख़याल रखते थे.

नेता जी की  सबसे बड़ी खासियत थी भीड़ में भी अपने लोगों को पहचान लेना, उनका नाम लेकर बुलाना, उनसे जुड़ी किसी घटना पर बात पूछ लेना कि उस मामले में क्या रहा? त्वरित आदेश देकर मदद करना.

आमजनमानस के बुलावे पर उसके कार्यक्रम में पहुँच जाना और घंटों वहाँ उपस्थित रहना, लोगों से मिलना हालचाल लेना, ज़रूरत मंदों की मदद करना.

मीडिया से उनके दोस्ताना रिश्ते, मीडिया के कुछ वरिष्ठ अक्सर कहते थे कि किसी पत्रकार को, फोटोजर्नलिस्ट को कोई ज़रूरत हो नेता जी तुरंत मदद करते थे, उनके कार्यक्रमों में पहुँच जाते थे, परिवार के वरिष्ठ की भूमिका निभाते थे, पत्रकार चाहे उनके विरोध में ही क्यों न लिखता रहा हो, रिश्ते सौहार्दपूर्ण ही रहते थे.

पार्टी को कैसे मज़बूत बनाया जाये? इसके लिए नेता जी ने अपनी पार्टी की तमाम छोटी छोटी इकाइयां बनाई, छोटे संगठन बनाये, वो विभिन्न वर्गों, कार्यक्षेत्रों को लेकर थीं. युवा कैसे जुड़ें, छात्र कैसे जुड़ें, महिला शाखा कैसे काम करेगी उसकी क्या भूमिका होगी. गॉव के लोग, प्रधान, पंचायत के लोग कैसे जुड़ेंगे फिर शहर में छोटी इकाइयों को क्या ज़िम्मेदारी और पद दिये जायें ताकि छोटे संगठनों के पास अपना नेता भी हो उसके उपर ज़िले स्तर के नेता बनाये फिर राज्य स्तर के और फिर वरिष्ठ मंत्री, सांसद और फिर सबसे सुप्रीम स्वयं नेता भी सबकी बातें सुनते थे, सलाह देते थे, संगठन की मज़बूती के लिए तमाम छोटी सभाएं होती थी.

विभिन्न मुद्दों पर बैठक, धरने, प्रदर्शन, विरोध आदि के माध्यम से नेता जी का संगठन मज़बूती से विपक्ष के रूप में अपनी दावेदारी पेश करता था. उसी जोश और ऊर्जा से तमाम युवा नेता निकलें जिन्होंने पार्टी को मज़बूती दी.

छोटे संगठन और इकाइयों की ज़िम्मेदारी देकर  नेता जी युवाओं को नेतृत्व करना सिखाते थे. आज आप देखेंगे तो पाएंगे कि नेता जी की उसी स्कूलिंग से कई लोग बड़े नेता बने, मंत्री सांसद बनें. नेता जी बखूबी जानते थे कि किस घटनाक्रम पर क्या बयान और क्या एक्शन सबका ध्यान उनकी तरफ खींच लेगा..

प्रतिभाशाली व्यक्ति की तारीफ करने से नेता जी कभी न चूकते थे, चाहे वो उनके विपक्ष का ही क्यों न हो. पारखी नज़र के धनी थे नेता जी, संघर्षवान जुझारू और क्रांतिकारी व्यक्ति को अपनी पार्टी से जोड़ने का हर संभव प्रयास करते थे, उनकी पार्टी का कोई व्यक्ति अगर किसी लालच वश पार्टी लाइन से भटक भी जाये तो उसे डांट डपट कर, कुछ दिन नाराज़ी दिखाकर पुनः वापस बुला लेते थे और जो भूमिका उसकी थी उससे बडी भूमिका उसे देते थे ताकि वो व्यक्ति स्वयं ये महसूस करे कि नेता जी उस पर कितना गहरा विश्वास करते हैं, ऐसे में वो व्यक्ति फिर कभी उन्हें छोड़कर जाने की सोच भी नहीं सकता था.

अपने समकालीन नेताओं के परिजनों की ज़रूरतों, बच्चों की पढ़ाई, उनकी ज़रूरतों, रोज़गार आदि के लिए वो व्यक्तिगत प्रयास करते थे, तमाम उदाहरण हैं. दलितों पिछड़ों, वंचितों, ज़रूरतमंदों को कैसे मुख्यधारा में लाया जाये उसके लिए उन्होनें तमाम सरकारी योजनाएं बनाईं, रोज़गार के नये पद सृजित किये.

किसानों मजदूरों  के आंदोलनों में अपनी सहभागिता की, संसद में सवाल उठाये, मुआवज़े दिलवाए, किसानों के तमाम ऋण माफ़ करवाये, गन्ना किसानों को उचित मूल्य दिलवाना, किसान बीमा जैसी कई योजनाएं लागू करवाई.

आज उनके निधन पर कई नेता बता रहे हैं कि तमाम मुद्दों पर राजनैतिक विरोध के बावजूद भी हम लोग नेताजी से मार्गदर्शन लेने उनके आवास पर चले जाते थे. जब मोदी जी प्रधानमंत्री नहीं बने थे, उससे पहले ही नेता जी ने मोदी जी को यशस्वी होने और प्रधानमंत्री बनने का आशीर्वाद दिया था.

मोदी जी के प्रधानमंत्री बन जाने पर पुनः प्रधानमंत्री बनने का आशीर्वाद भी नेता ने दिया. ऐसे सह्हृद वाले थे नेता जी. किसी पार्टी, किसी मुद्दे , किसी राजनेता के विरोध में भी नेता जी का एक अपनापन रहता था, किसी के प्रति कटु शब्द, और अभद्र भाषा नहीं अपनाई उन्होंने..

कला संस्कृति साहित्य प्रेमी थी, कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों में उनकी सहभगिता स्वयं की इच्छा से होती थी.. कलाकारों का सम्मान करते थे, उन्हें कई सुविधायें, सम्मान,  दिये. उनकी बातें मानते थे. इधर के कुछ सालों में बदलते राजनीतिक माहौल में नेता जी के कई बयान ऐसे आये जहाँ उनकी निराशा झलकी.

चाहते, न चाहते हुए भी उन्होंने कुछ बातें सार्वजनिक मंचों से की भी. उनकी राजनैतिक विरासत में गुटबाज़ी हुई, कुछ लोगों के अहंकार के चलते परिवार में सेंध मारी हो गयी. राजनैतिक विरासत से भरा पूरा परिवार कई टुकड़ों में बंट गया, जब तब नेता जी ने सबको एक साथ जोड़ने की कोशिश की, कई बार डांटा भी…लेकिन अब नेता जी बुर्जुर्ग हो चले थे.

परिवार में जिसकी जो राजनैतिक महत्वाकांक्षा थी उसने उस दिशा में कदम उठाया बिना नेता जी के सलाह मशविरे के. परिवार का वो सदस्य जैसे जब नेता जी से मिला, नेता जी ने अपना हाथ उसके सर पर रखकर मुस्कुराते हुए आशीर्वाद ही दिया, जैसे वो कह रहे हों कि मैं तो अब बस आशीर्वाद ही देने लायक बचा हूँ, मेरी सलाहें मशविरे अब किसी काम के नहीं.

धर्म, न्याय, राष्ट्र और नीति के लिए लड़ने वाले श्री कृष्ण से माता गांधारी ने महाभारत के युद्ध के बाद कहा था ‘तुम्हारी नीतियों की वजह से मैं पुत्रहीना हुई हूँ, मेरे पुत्र मारे गये हैं, मेरा वंश समाप्त होने को है’ मैं तुम्हें श्राप देती हूँ कि उसी तरह से तुम्हारे यादव कुल के लोग आपस में ही एक दूसरे को मार काट खाएंगे’.

श्रीकृष्ण ने हँसते हुए वो श्राप स्वीकर करते हुए कहा था कि ‘ माँ हो तुम मेरी जो कहोगी वो सब स्वीकार्य मुझे’ गांधारी को बाद में अपने कहे पर बहुत पछतावा था, लेकिन तब तक श्री कृष्ण तो वो श्राप स्वीकार कर चुके थे.

अंत में श्रीमद्भागवत गीता के रचियता, राजनीति का पाठ पढ़ाने वाले श्री कृष्ण एक जंगल में अकेले थे, जब एक आखेटक ने उनके प्राण हर लिये.

श्री कृष्ण अपने पीछे अपने वंशजों को छोड़कर चले गये ‘लड़ने के लिए’……

अब देखना है कि गांधारी का ये श्राप शेष रहेगा या इससे मुक्ति मिलेगी.

बहरहाल धरतीपुत्र मुलायम सिंह यादव एक समाजवादी विचारधारा का स्कूल स्थापित करके गये हैं ‘समाजवादी पार्टी’ अब आप देखिए उस स्कूल को कैसे चलाना है? …

मुलायम सिंह जी तो अमर हो गये, आज अपने पीछे बहुत कुछ छोड़कर…

नेता जी शत शत नमन आपको.

आप जैसा नेता धरती पर फिर आये आप जैसी सोच विचार   अन्य नेताओं में भी आये यही ईश्वर से प्रार्थना है. प्रभु श्री कृष्ण आपको पुनः धरती पर भेजें राजनीति का पाठ पढ़ाने के लिए.

संदीप यादव 

फ़िल्म अभिनेता, पूर्व पत्रकार, स्वतंत्र टिप्पणीकार 

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