कुत्ते की पूँछ,
में क्या बुराई होती,
आओ समझें।
कटे बिना वो,
सीधी हो ही न सके,
जीवन भर।
नहीं दिखती,
अपनी कोई बुराई,
किसी को भी।
लगे अच्छी ही,
हमें वह हमेशा,
यही समस्या।
ज़िद क्रोध भी,
हमें नहीं छोड़ते,
ठीक वैसे ही।
नहीं सुनते,
हम बात किसी की,
अहंकार में।
टोंकने पर,
और ज़िद बढ़ती,
बुरी तरह।
समझाना भी,
ज़हर सा लगता,
अपनों का भी।
अंत में हम,
रह जाते अकेले,
दुःखी उदास।
जब भी इसे,
समझ लेंगे हम,
सुख बढेगा।
बुढ़ापे में तो,
इसे बदल पाना,
असंभव है।
अच्छा यही है,
इसे जल्दी समझें,
अपने आप।
बच्चे तो बस,
सीखेंगे हमसे ही,
अच्छा या बुरा।
निर्णय जो भी,
हमारे होंगे आज,
कल दिखेंगे।
पछतावे से,
मिलेगा कुछ नहीं,
हमें बाद में।
कवि : ले. कर्नल अनूप सक्सेना